शिवाजी बनाम औरंगज़ेब: वो इतिहास जो किताबों में नहीं बताया गया

भारत का इतिहास सदियों से उतार–चढ़ाव, युद्ध, संस्कृति, धर्म और राजनीति की कहानियों से भरा हुआ है। यह इतिहास केवल घटनाओं की शृंखला नहीं है, बल्कि यह भी है कि उन घटनाओं को किसने लिखा, किस दृष्टिकोण से लिखा और किसने आगे प्रचारित किया। बहुत बार ऐसा हुआ है कि एक ही घटना को अलग–अलग दृष्टिकोण से अलग तरह से बताया गया। यही कारण है कि औरंगज़ेब और शिवाजी महाराज जैसे दो महान ऐतिहासिक पात्रों की छवि आज हमारे सामने एकदम भिन्न रूपों में आती है।

आज की शिक्षा, राजनीति और मीडिया ने हमें जो “इतिहास” दिया है, वह अक्सर अधूरा या एकतरफ़ा होता है। इस लेख में हम उसी दृष्टिकोण को आधार बनाकर गहराई से विश्लेषण करेंगे कि असली इतिहास क्या था, किन तथ्यों को छुपाया गया, किन्हें बढ़ा–चढ़ाकर दिखाया गया और हम संतुलित नज़रिए से कैसे सच्चाई को समझ सकते हैं।


शिवाजी बनाम औरंगज़ेब: वो इतिहास जो किताबों में नहीं बताया गया


पृष्ठभूमि : औरंगज़ेब और शिवाजी महाराज

सबसे पहले हमें इन दोनों ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन और कार्यों की बुनियादी समझ होनी चाहिए।

औरंगज़ेब

  • पूरा नाम अबुल मुज़फ्फर मुहिउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर था।

  • 1658 से 1707 तक वह मुग़ल साम्राज्य का बादशाह रहा।

  • उसने अपने शासन में साम्राज्य की सीमाओं को काफी बढ़ाया।

  • वह कठोर अनुशासन और धार्मिक रूप से कड़े रवैये के लिए जाना जाता है।

  • उसने जज़िया कर को दोबारा लागू किया और कई मंदिरों को गिरवाने के आदेश दिए।

  • हालाँकि, उसके शासन में कुछ हिन्दू राजाओं और सामंतों को उच्च पद भी दिए गए और राजनीतिक समझौते भी हुए।

शिवाजी महाराज

  • जन्म 1630 में शिवनेरी दुर्ग, पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ।

  • उन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और “स्वराज्य” की अवधारणा प्रस्तुत की।

  • वे छापामार युद्ध नीति (गुरिल्ला टैक्टिक्स) के महारथी थे।

  • उन्होंने अनेक किले बनवाए और जनता से सीधा जुड़ाव रखा।

  • शिवाजी महाराज धार्मिक सहिष्णुता, प्रशासनिक सुधार और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध रहे।

  • वे केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी शासक और संगठनकर्ता थे।


इतिहास लिखने वाले स्रोत

इतिहास को समझने के लिए हमें यह देखना चाहिए कि कौन–कौन से स्रोत उपलब्ध हैं और उनमें क्या लिखा है।

  1. मुग़ल दरबार के दस्तावेज़ – ये अधिकतर फ़ारसी भाषा में लिखे गए और मुग़ल दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं।

  2. मराठा स्रोत – बख़रें (Bakhars), मराठी लोक साहित्य और पत्राचार में शिवाजी महाराज की महिमा का वर्णन है।

  3. यूरोपीय यात्रियों और व्यापारियों के लेख – पुर्तगाली, डच और अंग्रेज़ यात्रियों ने जो देखा वही लिखा, इसलिए कई बार वे अधिक निष्पक्ष भी लगते हैं।

  4. लोककथाएँ और जनमानस – महाराष्ट्र और भारत के अन्य हिस्सों में लोकगीतों और कथाओं के माध्यम से शिवाजी महाराज की छवि “लोकनायक” के रूप में गढ़ी गई।

  5. धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथ – मंदिरों के शिलालेख, मस्जिदों और कब्रों से जुड़े प्रमाण भी इतिहास का हिस्सा हैं।


विवाद और मिथक

अब आइए देखें कि दोनों की छवियों को लेकर किन–किन विवादों और मिथकों ने जन्म लिया।

औरंगज़ेब से जुड़े विवाद

  • उसे कट्टर मुस्लिम शासक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

  • कहा जाता है कि उसने केवल हिन्दुओं को दबाने का काम किया।

  • परंतु सच्चाई यह है कि उसने कई हिन्दू राजाओं को उच्च पद दिए और प्रशासन में शामिल किया।

  • उसने जज़िया कर ज़रूर लगाया, पर उसकी नीतियाँ केवल धार्मिक कारणों से नहीं बल्कि राजनीतिक और आर्थिक कारणों से भी प्रभावित थीं।

शिवाजी महाराज से जुड़े मिथक

  • उन्हें केवल हिन्दू धर्मरक्षक और मुस्लिम विरोधी योद्धा के रूप में दिखाया गया।

  • जबकि सच यह है कि उनके दरबार में कई मुस्लिम सेनापति और सहयोगी भी थे।

  • उनका संघर्ष केवल धर्म पर नहीं बल्कि स्वराज्य और स्वतंत्रता की अवधारणा पर आधारित था।

  • वे युद्धनीति में जितने कुशल थे उतने ही प्रशासनिक सुधार और जनहित में भी सक्रिय थे।


क्यों कहा जाता है कि “इतिहास छुपाया गया”

वीडियो का मुख्य तर्क यही है कि भारतीयों को इतिहास का सही रूप नहीं बताया गया। इसके पीछे कई कारण माने जा सकते हैं।

  1. स्रोतों की चयनात्मकता – पाठ्यपुस्तकों में वही लिखा गया जो सत्ता या लेखकों को सुविधाजनक लगा।

  2. राजनीतिक एजेंडा – स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक, अलग–अलग राजनीतिक दलों ने अपनी विचारधारा के हिसाब से इतिहास को प्रस्तुत किया।

  3. सरलीकरण – स्कूलों में बच्चों को समझाने के लिए इतिहास को इतना साधारण बना दिया गया कि असली जटिलता गायब हो गई।

  4. लोकप्रिय संस्कृति का असर – फ़िल्में, धारावाहिक और लोककथाएँ अक्सर ऐतिहासिक तथ्यों से अधिक भावनाओं पर आधारित होती हैं।

  5. धार्मिक पहचान – समुदाय अपनी पहचान मजबूत करने के लिए इतिहास को अपने अनुसार रंग देते हैं।


आधुनिक राजनीति और समाज पर प्रभाव

आज औरंगज़ेब और शिवाजी महाराज की छवि केवल इतिहास तक सीमित नहीं रही।

  • शिवाजी महाराज को महाराष्ट्र और पूरे भारत में नायक और प्रेरणा स्रोत माना जाता है।

  • औरंगज़ेब को अक्सर खलनायक के रूप में दिखाया जाता है, जबकि उसके शासन के कई पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

  • राजनीतिक दल चुनावों में इन दोनों नामों का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए करते हैं।

  • जगह–जगह मूर्तियाँ, सड़कें और संस्थान नामकरण से पहचान की राजनीति खेली जाती है।

  • धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और शोध की जगह भावनात्मक अपील को ज़्यादा महत्व दिया जाता है।


संतुलित दृष्टिकोण कैसे बने

अगर हमें असली इतिहास जानना है, तो कुछ बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है।

  1. केवल एक ही स्रोत पर भरोसा न करें, बल्कि मुग़ल, मराठा और विदेशी सभी स्रोतों को पढ़ें।

  2. स्रोत कब और किसने लिखा, इस पर विचार करें। हर लेखक की अपनी राजनीतिक और व्यक्तिगत दृष्टि होती है।

  3. आधुनिक इतिहासकारों के शोध को देखें, जो पुरानी धारणाओं को चुनौती देते हैं।

  4. समय और परिस्थितियों के हिसाब से शासकों के निर्णयों को समझें।

  5. राजनीति और वर्तमान एजेंडे से प्रभावित होकर इतिहास को न देखें।


औरंगज़ेब और शिवाजी : तुलनात्मक अवलोकन

  • औरंगज़ेब का उद्देश्य साम्राज्य का विस्तार और केंद्रीकरण था, जबकि शिवाजी का उद्देश्य स्वराज्य और जनता का हित था।

  • औरंगज़ेब ने धार्मिक कट्टरता दिखाई, लेकिन उसके राजनीतिक कारण भी थे।

  • शिवाजी धार्मिक रूप से सहिष्णु थे, उन्होंने मुसलमानों को भी महत्व दिया।

  • औरंगज़ेब की सेना बड़ी थी लेकिन शिवाजी की छापामार रणनीति अधिक प्रभावी साबित हुई।

  • जनता की दृष्टि से शिवाजी हमेशा लोकनायक बने, जबकि औरंगज़ेब का नाम डर और कट्टरता से जुड़ गया।


निष्कर्ष

इतिहास कभी भी पूरी तरह काला या सफेद नहीं होता। यह हमेशा धुंधला और जटिल होता है।

  • औरंगज़ेब और शिवाजी दोनों महान शासक थे, लेकिन दोनों में अच्छे और बुरे पहलू थे।

  • शिवाजी महाराज ने स्वराज्य और स्वतंत्रता का सपना साकार किया, इसलिए वे नायक बने।

  • औरंगज़ेब ने मुग़ल साम्राज्य को विस्तार दिया, लेकिन उसकी धार्मिक नीतियों ने उसे कठोर और कट्टर बना दिया।

  • असली सच्चाई यह है कि दोनों के कार्यों को समझने के लिए हमें उनके समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा।

  • आज ज़रूरत है कि हम इतिहास को राजनीति और धर्म से अलग रखकर संतुलित दृष्टिकोण से देखें।

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