बारिश…
एक ऐसी प्राकृतिक घटना जिस पर पूरी मानव सभ्यता टिकी हुई है। खेती, पीने का पानी, नदियाँ, जंगल और जीवन — सब कुछ बारिश पर निर्भर करता है। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ी, आबादी बढ़ी और जलवायु बदली, वैसे-वैसे बारिश अनिश्चित होती चली गई। कहीं बाढ़, तो कहीं भयानक सूखा।
ऐसे में एक सवाल बार-बार उठने लगा —
अगर इंसान मशीनें बना सकता है, अंतरिक्ष में जा सकता है, तो क्या वह बारिश भी करा सकता है?
इसी सवाल से जन्म हुआ Cloud Seeding यानी क्लाउड सीडिंग, जिसे आम भाषा में कृत्रिम बारिश कहा जाता है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें बादलों के भीतर कुछ विशेष रासायनिक कण छोड़े जाते हैं, ताकि बादलों में मौजूद जलवाष्प एक-दूसरे से जुड़कर भारी हो जाए और बारिश या बर्फ के रूप में धरती पर गिर सके।
सरल शब्दों में कहें तो:
👉 बारिश को पैदा नहीं किया जाता
👉 बल्कि मौजूद बादलों से बारिश होने की संभावना बढ़ाई जाती है
यह बहुत बड़ा फर्क है, जिसे लोग अक्सर समझ नहीं पाते।
बारिश प्राकृतिक रूप से कैसे होती है?
क्लाउड सीडिंग को समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि बारिश अपने आप कैसे होती है।
सूरज की गर्मी से समुद्र, नदियाँ और झीलों का पानी वाष्प बनकर ऊपर उठता है। ठंडी हवा में यह वाष्प छोटे-छोटे जलकणों में बदल जाती है और बादल बनते हैं। जब ये कण आपस में टकराकर बड़े और भारी हो जाते हैं, तब गुरुत्वाकर्षण के कारण वे बारिश के रूप में गिरते हैं।
लेकिन कई बार बादल होते हुए भी बारिश नहीं होती।
क्यों?
क्योंकि जलकण इतने छोटे होते हैं कि वे भारी नहीं बन पाते।
यहीं से क्लाउड सीडिंग का रोल शुरू होता है।
क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
क्लाउड सीडिंग में बादलों के अंदर ऐसे कण डाले जाते हैं, जिनके चारों ओर जलकण आसानी से चिपक सकें। इससे छोटे-छोटे जलकण मिलकर बड़े कण बना लेते हैं और बारिश होने की संभावना बढ़ जाती है।
इन कणों में आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं:
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सिल्वर आयोडाइड
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ड्राई आइस
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नमक के सूक्ष्म कण
इन पदार्थों की संरचना बर्फ के क्रिस्टल जैसी होती है, जिससे पानी आसानी से जमता है।
क्लाउड सीडिंग के तरीके
क्लाउड सीडिंग करने के मुख्य रूप से तीन तरीके हैं:
1. हवाई जहाज़ के ज़रिए
हवाई जहाज़ सीधे बादलों के भीतर उड़कर रसायनों का छिड़काव करते हैं।
2. रॉकेट या मिसाइल के ज़रिए
कुछ देश ज़मीन से रॉकेट दागकर उन्हें बादलों में विस्फोटित करते हैं।
3. ज़मीन से मशीनों द्वारा
पहाड़ी इलाकों में ज़मीन से धुएँ के रूप में कण छोड़े जाते हैं, जो ऊपर जाकर बादलों तक पहुँचते हैं।
क्लाउड सीडिंग का इतिहास
क्लाउड सीडिंग कोई नई तकनीक नहीं है। इसका विचार पहली बार 1940 के दशक में सामने आया था।
अमेरिका में वैज्ञानिकों ने प्रयोग के तौर पर बादलों में ड्राई आइस डाला और देखा कि उससे बर्फ गिरने लगी। इसके बाद कई देशों ने इस तकनीक पर शोध शुरू किया।
धीरे-धीरे यह तकनीक सैन्य, कृषि और जल प्रबंधन से जुड़ गई।
चीन और क्लाउड सीडिंग
चीन इस तकनीक को सबसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने वाला देश माना जाता है।
चीन में:
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सूखे से निपटने
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फसलों के लिए बारिश
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बड़े आयोजनों के दौरान मौसम नियंत्रित करने
जैसे कामों के लिए क्लाउड सीडिंग की जाती है।
यहाँ तक कि ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट्स के दौरान बारिश रोकने के लिए भी इस तकनीक का उपयोग किया गया है।
दुबई और कृत्रिम बारिश
दुबई जैसे रेगिस्तानी देश में पानी सबसे बड़ी समस्या है। वहाँ प्राकृतिक बारिश बहुत कम होती है।
इसी वजह से दुबई ने क्लाउड सीडिंग को गंभीरता से अपनाया। यहाँ खास तौर पर ऐसे ड्रोन और विमान इस्तेमाल किए जाते हैं, जो बादलों में इलेक्ट्रिक चार्ज या नमक के कण छोड़ते हैं।
कई बार दुबई में अचानक भारी बारिश देखने को मिलती है, जो इसी तकनीक का परिणाम मानी जाती है।
क्या क्लाउड सीडिंग सच में काम करती है?
यह सबसे बड़ा और सबसे ज़रूरी सवाल है।
वैज्ञानिकों के अनुसार:
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क्लाउड सीडिंग बारिश की मात्रा 10–30% तक बढ़ा सकती है
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लेकिन यह गारंटी नहीं देती कि बारिश होगी ही
अगर बादल में पहले से नमी नहीं है, तो क्लाउड सीडिंग बेकार है।
यानी यह जादू नहीं, बल्कि संभावना बढ़ाने वाली तकनीक है।
भारत और क्लाउड सीडिंग
भारत में भी कई बार सूखे के समय इस तकनीक को आज़माया गया है। कुछ राज्यों में इसे प्रयोगात्मक रूप से अपनाया गया।
कभी-कभी इसके सकारात्मक परिणाम मिले, तो कभी कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
इसका कारण यही है कि भारत जैसे देश में मौसम बहुत जटिल है और हर जगह एक-सी तकनीक काम नहीं करती।
पर्यावरण पर प्रभाव
क्लाउड सीडिंग को लेकर एक बड़ा डर यह भी है कि कहीं यह पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए।
अब तक के शोध बताते हैं कि:
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इस्तेमाल होने वाले रसायन बहुत कम मात्रा में होते हैं
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उनका पर्यावरण पर कोई बड़ा नकारात्मक असर साबित नहीं हुआ है
लेकिन लंबे समय तक बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के प्रभावों पर अभी भी शोध जारी है।
मिथक और साजिश की कहानियाँ
क्लाउड सीडिंग को लेकर कई अफवाहें भी फैली हुई हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि:
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सरकारें मौसम को पूरी तरह नियंत्रित कर रही हैं
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जानबूझकर बाढ़ या सूखा कराया जा रहा है
लेकिन सच्चाई यह है कि इंसान के पास अभी मौसम को पूरी तरह नियंत्रित करने की क्षमता नहीं है। मौसम एक बहुत विशाल और जटिल प्रणाली है।
क्लाइमेट चेंज और क्लाउड सीडिंग
आज जब जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है, तब क्लाउड सीडिंग को समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि:
👉 यह समाधान नहीं, बल्कि अस्थायी उपाय है
👉 असली समाधान है जल संरक्षण, जंगलों की रक्षा और प्रदूषण कम करना
भविष्य में क्या संभव है?
भविष्य में तकनीक और उन्नत हो सकती है। ड्रोन, AI और सैटेलाइट के ज़रिए मौसम को बेहतर समझा जा सकता है।
हो सकता है आने वाले समय में क्लाउड सीडिंग और अधिक सटीक हो जाए, लेकिन यह कभी भी प्रकृति का पूरा विकल्प नहीं बन सकती।
निष्कर्ष: विज्ञान या भ्रम?
क्लाउड सीडिंग न तो कोई चमत्कार है, न ही कोई धोखा।
यह एक सीमित लेकिन उपयोगी वैज्ञानिक तकनीक है, जो सही परिस्थितियों में मदद कर सकती है। लेकिन इसे बारिश की मशीन समझना गलत होगा।
प्रकृति आज भी इंसान से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है।
और शायद यही सच है —
हम प्रकृति को आदेश नहीं दे सकते, लेकिन उसे समझकर उसके साथ चल सकते हैं।
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